Tuesday, August 12, 2008

एक ख्वाहिश मेरी आँखों मे

एक ख्वाहिश मेरी आँखों मे

मेरी आँखों मे तेरे दीदार की ख्वाहिश अभी तक है
तेरी यादो से मेरे दिल की ज़ेबैश अभी तक है
तुम्हारे बाद कोई भी नही आया है इस दिल मे
तुम अपना घर बना लो इतनी गुनजाईश अभी तक है।

निगाहे बस तुम्हे ही ढूंढती रहती है और लम्हा
रुख-ए-रोशन दिखा दो इनकी फरमाईश अभी तक है
अज़ल से तुम को चाहा है अबाद तक तुम को चाहेंग़े
मेरी उलफत की बस इतनी सी पैमाईश अभी तक है।

तुम्हारी राह मे मैने वो जो पलके बिछायी थी
जाने किस तरह क़ायम ये ज़बैश अभी तक है।

3 comments:

vipinkizindagi said...

bahut achchi post

Nitish Raj said...

बहुत ही बढ़िया रवि, अति सुंदर...यार दूसरी के इंतजार में।

Udan Tashtari said...

बहुत बढिया.लिखते रहें.