ज़रा सी खुशी
हर कदम पर साथ तेरा होता तो कुछ और बात होती
बाहों मे तेरी गर मेरा वजूद होता तो कुछ और बात होती
गैरों को दे रहे थे वो भर भर के जाम दिल से
हमे नज़रों से ही पिलाते तो कुछ और बात होती
गिर गिर के संभल रही हूँ मैं राहे इश्क़ में
वो थाम लेते गर मेरा हाथ तो कुछ और बात होती
जाने क्यों ? उसके साथ मेरा रिश्ता बे-नाम ही रहा
गर दे देते वो बे-नामी को कोई नाम तो कुछ और बात होती
ज़माने का हर सितम हंस हंस कर सहते हम गर
ऐसे मिल जाती उन्हे ज़रा सी खुशी तो कुछ और बात होती
गर ना होता कोई बे-वफा तेरी खुदाई मे
सब होते बा-वफा तो कुछ और बात होती
मौसम-ए-बहार होता हर तरफ
गर ना होता एहसास-ए-जुदाई तो कुछ और बात होती.
बाहों मे तेरी गर मेरा वजूद होता तो कुछ और बात होती
गैरों को दे रहे थे वो भर भर के जाम दिल से
हमे नज़रों से ही पिलाते तो कुछ और बात होती
गिर गिर के संभल रही हूँ मैं राहे इश्क़ में
वो थाम लेते गर मेरा हाथ तो कुछ और बात होती
जाने क्यों ? उसके साथ मेरा रिश्ता बे-नाम ही रहा
गर दे देते वो बे-नामी को कोई नाम तो कुछ और बात होती
ज़माने का हर सितम हंस हंस कर सहते हम गर
ऐसे मिल जाती उन्हे ज़रा सी खुशी तो कुछ और बात होती
गर ना होता कोई बे-वफा तेरी खुदाई मे
सब होते बा-वफा तो कुछ और बात होती
मौसम-ए-बहार होता हर तरफ
गर ना होता एहसास-ए-जुदाई तो कुछ और बात होती.
...Ravi
'YADEIN'
http://ravi-yadein.blogspot.com/
'YADEIN'
http://ravi-yadein.blogspot.com/
3 comments:
सही है.
prem ka saath to amulya hai.....sundar rachna
Dear Ravi
acchi kavita hai. Aage bhi aapki nai kavitaon ki besabri se pratksha rahegi.
Post a Comment