Monday, August 04, 2008

ज़रा सी खुशी


ज़रा सी खुशी


हर कदम पर साथ तेरा होता तो कुछ और बात होती
बाहों मे तेरी गर मेरा वजूद होता तो कुछ और बात होती
गैरों को दे रहे थे वो भर भर के जाम दिल से
हमे नज़रों से ही पिलाते तो कुछ और बात होती
गिर गिर के संभल रही हूँ मैं राहे इश्क़ में
वो थाम लेते गर मेरा हाथ तो कुछ और बात होती
जाने क्यों ? उसके साथ मेरा रिश्ता बे-नाम ही रहा
गर दे देते वो बे-नामी को कोई नाम तो कुछ और बात होती
ज़माने का हर सितम हंस हंस कर सहते हम गर
ऐसे मिल जाती उन्हे ज़रा सी खुशी तो कुछ और बात होती
गर ना होता कोई बे-वफा तेरी खुदाई मे
सब होते बा-वफा तो कुछ और बात होती
मौसम-ए-बहार होता हर तरफ
गर ना होता एहसास-ए-जुदाई तो कुछ और बात होती.


...Ravi
'YADEIN'
http://ravi-yadein.blogspot.com/

3 comments:

Udan Tashtari said...

सही है.

art said...

prem ka saath to amulya hai.....sundar rachna

Pawan Kumar said...

Dear Ravi
acchi kavita hai. Aage bhi aapki nai kavitaon ki besabri se pratksha rahegi.