आजा अंधेरी राते
तन्हा बिता चुका हूँ
शमा जहा ना जलती
आंखे जला चुका हूँ
तुम आओगे किसी दिन
इसी इन्तिज़ार मे
नजाने कितनी हसरते
मिटा चुका हूँ
ये चन्द आहे
ये चन्द आंसू
सिवा-ए-इनके बचा ही क्या है
ज़माना क्या छीन लेगा हमसे
किसी ने हमको दिया ही क्या है
...Ravi
'YADEIN'
http://ravi-yadein.blogspot.com/
Thursday, September 04, 2008
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6 comments:
ravi ji kya baat hai, kuchh chhipa hua hai andar gahre me, jo baahar nikalna chahta hai
बहुत उदास रचना...अपनी तन्हाई को आपने बहुत अच्छे से अभिव्यक्त किया है...
नीरज
बहुत उदास रचना...अपनी तन्हाई को आपने बहुत अच्छे से अभिव्यक्त किया है...
नीरज
aap aur aapki tanhaayi......abhivyakti gahraai liye
आजा अंधेरी राते
तन्हा बिता चुका हूँ
शमा जहा ना जलती
आंखे जला चुका हूँ
--खूब कहा!!गहरी रचना!!
bahut khoon
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